भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के लिए खाका (ब्लूप्रिन्ट) कृषि प्रबंधन केंद्र में तैयार किया गया था
आईआईएमए की
अपनी शुरूआत के समय से ही कृषि खाद्य एवं ग्रामीण क्षेत्रों के प्रति प्रतिबद्धता तथा विशेषज्ञता रही है, जब संस्थान ने अल्प प्रबंधित लेकिन सामाजिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों – विशेष रूप से कृषि से संबंधित प्रबंधकीय मुद्दों को स्वीकार कर लिया था। कृषि क्षेत्र एवं सहकारी समितियों की समस्याओं पर काम करने के लिए एक छोटे समूह की स्थापना सन् 1963 में की गई, जिसे एगको समूह कहा जाता है। इस समूह को सन् 1971 में फिर से कृषि प्रबंधन केन्द्र (सीएमए) के रूप में नामित किया गया। सीएमए का लक्ष्य प्रबंधन विज्ञान की अवधारणाओं का उपयोग करते हुए कृषि-खाद्य क्षेत्र के लिए आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में सहायता करना है।
संस्थान में सीएमए एक अंतर्विषयक समूह है जो छह प्राथमिक और तीन गौण संकाय सदस्यों से मिलकर बना है और अपनी स्थापना के समय से ही यह सक्रिय रूप से कृषि के प्रबंधन, कृषि-व्यवसाय, ग्रामीण एवं संबद्ध क्षेत्रों सहित संबंधित मुद्दों को लागू करने, नीति एवं समस्या का समाधान करने के अनुसंधान में शामिल है, जो कि प्रशिक्षुओं एवं नीति निर्माताओं के लिए प्रासंगिक हैं और बड़े पैमाने पर समाज के लिए चिंता के विषय रहे हैं। प्रारंभिक वर्षों में, इस केन्द्र ने खंड विकास प्रशासन, सहकारिता, ग्रामीण विकास और अधिक उपजवाले विभिन्न क्षेत्रों के कार्यक्रमों में प्रशासन के विकास तथा सार्वजनिक व सहकारी संगठनों द्वारा निभाई गई भूमिकाओं की प्रक्रियाओं को समझने के लिए अध्ययन किया था। समय के साथ, इस केन्द्र की अनुसंधान गतिविधियाँ कृषि-खाद्य क्षेत्रों में निवेश तथा सेवाओं की आपूर्ति करने वाले संगठनों की समस्याओं एवं विकास की संभावनाओं का अध्ययन करने और साथ ही साथ खेत उत्पादों की खरीद, प्रसंस्करण, एवं विपणन को विस्तारित किया गया था।
सीएमए का सन् 1965 से भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के साथ करीबी सहयोग रहा है और यह इस मंत्रालय के लिए कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के विभिन्न पहलुओं के बारे में अनुसंधान अध्ययन कार्य चलाता है तथा सरकार को तकनीकी सलाह देता है। सीएमए ने कृषि-खाद्य नीति, खरीद, विपणन, और कृषि आधारित वस्तुओं के प्रसंस्करण, खेत निवेश प्रद्धतियाँ, सिंचाई एवं जल प्रबंधन, कृषि एवं ग्रामीण वित्त, निवेश एवं सबसिडी, पशुधन, मत्स्य पालन, वानिकी, विश्व व्यापार संगठन के मुद्दों को समाविष्ट करते हुए कृषिलक्ष्यी व्यापार, कृषि में प्रतिस्पर्धात्मकता, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, ग्रामीण अवसंरचना, कृषि-खाद्य उद्योग तथा अनुबंध खेत कार्य में सीधा समन्वय, खाद्य खुदरा बिक्री, वस्तुओं का व्यापार, ग्रामीण नवाचार, शुष्क विस्तारों में प्रौद्योगिकी प्रबंधन, बौद्धिक संपदा अधिकार, जैव विविधता संरक्षण, जैव प्रौद्योगिकी, आनुवंशिक रूप से परिष्कृत जीवों और खाद्य सुरक्षा के मुद्दों पर काफी अनुसंधान किया है।
प्रायः, सीएमए ने ज्यादा व्यापक विश्लेषण और उप-क्षेत्रों/प्रणालियों की समझ के लिए महत्त्वपूर्ण विषयों के अनुसार कम रूचि के समूहों के लिए संकायों का गठन किया है। सामाजिक वानिकी में स्थायी समूह, सहकारिता, विश्व व्यापार संगठन, कृषि आदान, कृषि उद्योग आदि कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनमें सीएमए ने ठेस प्रयास किये हैं और इन क्षेत्रों में ज्ञान एवं साहित्य का सृजन करता है।
भारतीय खाद्य एवं कृषि व्यवसाय क्षेत्र वैश्विकीकरण, जैव प्रौद्योगिकी एवं आनुवंशिक रूप से परिष्कृत जीवों के तीव्र गति जैव प्रौद्योगिकीय परिवर्तन, व्यवसाय वातावरण में परिवर्तन और शीघ्र रूप से सरकार की उभरती भूमिका के कारण अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है। हाल ही में, सीएमए ने इन क्षेत्रों में अनुसंधान करने के लिए कुछ मुद्दों का पता लगाया है। सीएमए के हाल ही के प्रकाशनों में गुजरात की कृषि में उच्च विकास पथ एवं संरचनात्मक परिवर्तन, आर्थिक नीति सुधार एवं भारतीय उर्वरक उद्योग, भागीदारी सिंचाई प्रबंधन, बीटी कपास बनाम गैर बीटी कपास का अर्थशास्त्र, भारतीय चाय व्यापार में प्रतिस्पर्धात्मकता, मत्स्य पालन सबसिडी के बारे में वैश्विक बहस, कृषि व्यवसाय अनुबंध एवं संगठनों का प्रबंधन, कृषि मशीनरी, आनुवंशिक परिष्कृत खाद्य के लिए उभरते बाजार, विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के बाद के युग में एक संघीय ढांचे में मेट्रिक्स, प्राथमिक छोटे सब्जी उत्पादकों एवं परम्परागत फल एवं सब्जी खुदरा बिक्रीकर्ताओं पर ताज़ा खाद्य खुदरा बिक्री श्रृंखला का प्रभाव, ग्रामीण ऋण का प्रदर्शन, ताज़ा सब्जियों के लिए आधुनिक आपूर्ति श्रृंखला, बाजार एकीकरण, कृषि वस्तुओं के लिए बाजार की पहुँच, छोटे और सीमांत किसानों के लिए ऋण का प्रवाह, फलों एवं सब्जियों का विपणन, भारत में प्रसंस्कृत खाद्य का विपणन, अनुबंध खेती, जैविक उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला, और जैविक निवेश उत्पादन तथा विपणन इत्यादि विषय शामिल हैं। अनुसंधान के परिणाम स्वरूप पुस्तकें एवं मोनोग्राफ प्रकाशित हुए हैं, जिनकी आजतक की संख्या 244 है। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में बड़ी संख्या में शोध पत्रों के अलावा, केस एवं शिक्षण नोट भी तैयार किये गये हैं।
सीएमए के संकाय राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर नीति योजना एवं कार्यान्वयन में लगे हुए हैं। कुछ संकाय सदस्य भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और योजना आयोग द्वारा गठित सार्वजनिक, निजी, सहकारी समिति एवं अन्य विकासात्मक संगठनों के बोर्ड में हैं और विभिन्न समितियों/कार्य बलों/ कार्य समूहों के सदस्य हैं। सीएमए ने संस्थान के निर्माण में सहायता प्रदान की है तथा भारतीय वन प्रबंधन संस्थान, राष्ट्रीय कृषि विपणन संस्थान, और राष्ट्रीय सहकारी प्रबंधन संस्थान जैसे राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों के स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
सीएमए के संकाय स्नातकोत्तर कार्यक्रम, कृषि-व्यवसाय प्रबंधन में स्नातकोत्तर कार्यक्रम और डॉक्टरेट स्तर के कृषि में विशेषज्ञता के प्रबंधन में फैलो कार्यक्रम की शिक्षा से जुड़े हुए हैं। यह केन्द्र कृषि निवेश विपणन, खाद्य आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, अनुबंध खेती, उद्योग के अग्रणियों एवं प्रबंधकों के लिए बौद्धिक संपदा अधिकारों का सामरिक प्रबंधन, खाद्य एवं कृषि-व्यवसाय क्षेत्रों में नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों के क्षेत्र में अल्प अवधि के प्रबंधन विकास कार्यक्रम (एमडीपी) भी चलाता है। सीएमए सार्वजनिक, निजी, सहकारी, स्वयंसेवी एवं अतंरराष्ट्रीय संगठनों को परामर्श सेवाएँ प्रदान करता है।
क्षेत्र सदस्य :
प्राथमिक सदस्य
प्रोफेसर वैभव भमोरिया [Turn on JavaScript!]
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प्रोफेसर समर दत्ता [Turn on JavaScript!]
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प्रोफेसर वसंत पी. गाँधी [Turn on JavaScript!]
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प्रोफेसर अनिल के. गुप्ता [Turn on JavaScript!]
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प्रोफेसर विजय पॉल शर्मा [Turn on JavaScript!]
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प्रोफेसर सुखपाल सिंह [Turn on JavaScript!]
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गौण सदस्य
प्रोफेसर रवीन्द्र धोलकिया [Turn on JavaScript!]
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प्रोफेसर ए. के. जायसवाल [Turn on JavaScript!]
प्रोफेसर जी. रघुराम [Turn on JavaScript!]
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पिछले पाँच वर्षों में सीएमए ने भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के लिए निम्नानुसार की अनुसंधान परियोजनाएँ समाप्त कर ली है। :